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मध्यप्रदेश के भौतिक अवस्थिति, संरचना, / मध्यप्रदेश को भौगोलिक प्रदेश भौतिक स्वरूप /म.प्र. की भू-आकृतिक / म.प्र. को प्रमुख प्रादेशिक भागों में विभक्त कीजिए।

भारतीय उपमहाद्वीप के मध्य में स्थित 'मध्यप्रदेशदेश का 'हृदय स्थलकहा जाता है। यह क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य है। इस राज्य का विस्तार 18°26' से 30° उत्तरी अक्षांश तथा 74° से 84° 30' पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। इस राज्य का कुल क्षेत्रफल 4,42,841 वर्ग किलोमीटर है। समस्त राज्य प्रशासकीय दृष्टि से  भोपालग्वालियरइन्दौरजबलपुररींवाहोशंगाबादसागर तथा उज्जैन तथा 45 जिलों में विभाजित है। इसकी राजधानी भोपाल है।
 


सीमाएँ-मध्यप्रदेश राज्य के उत्तर में राजस्थान और उत्तरप्रदेश, उत्तर-पूर्व में उत्तरप्रदेश और बिहार, पश्चिम में राजस्थान और गुजरात, दक्षिण में महाराष्ट्र और आन्ध्र प्रदेश तथा पूर्व में बिहार और उड़ीसा राज्यों से इसकी सीमाएँ मिलती हैं।

 

भौतिक स्वरूप (Physical Setting)

 

धरातल-मध्यप्रदेश भारत के मध्यवर्ती पठार पर स्थित एक प्रमुख राज्य है। इस राज्य में उच्चावचन बहुत कम पाये जाते हैं। सामान्य ऊँचाई के और नदियों के मैदान पठार इस राज्य की प्रमुख स्थलाकृतियाँ हैं। समस्त धरातल प्राचीन चट्टानों से निर्मित है जिसमें अनेक पहाड़ियाँ तथा नदी घाटियों के कारण प्राकृतिक दशा में विविधता पाई जाती है। इस भाग में असंख्य नदियों चारों ओर को प्रवाहित होती हैं। मध्यप्रदेश वास्तव में एक जाल विभाजक है जिसमें नदियाँ चारों दिशाओं की ओर प्रवाहित होती हैं। कुछ नदियाँ उत्तर की और गंगा और यमुना में, कुछ पश्चिम की ओर बहती हुई अरब सागर में गिरती हैं, जिनमें नर्मदा और तापी मुख्य हैं। महानदी पूर्व और दक्षिण की ओर बहती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है।

 

समस्त राज्य में अधिकतम ऊँचाई 1,350 मीटर धूपगढ़, सतपुड़ा की महादेव श्रेणी में स्थित है। मध्यप्रदेश के उत्तरी भाग का ढाल उत्तर-पूर्व की ओर है। जिसके परिणामस्वरूप विन्ध्याचल, कैमूर आदि पहाड़ियों से निकलने वाली नदियाँ बेतवा, घसान, केन और मैकाल श्रेणी से निकलने वाली सोन नदी उत्तर और उत्तर-पूर्व की ओर प्रवाहित होती है। संरचना की दृष्टि से मध्यप्रदेश को उत्तरी तथा दक्षिणी दो भागों में विभाजित किया जाता है। उत्तरी भाग उच्च प्रदेश है जो विंध्य शैल-समूह तथा ग्रेनाइट और नीस शैलों से निर्मित है। परन्तु दक्षिण की सतपुड़ा की श्रेणी गोंडवाना शैल-समूह से बनी है।

   भौतिक या प्राकृतिक विभाग या भौतिक खण्ड

 धरातल की दृष्टि से मध्यप्रदेश को चार भागों में विभाजित किया जाता है- (1) उत्तरी उच्च प्रदेश (अ) मालवा का पठार, (ब) विन्ध्यन पठारी प्रदेश, (स) उत्तर का मैदानी भाग। (2) सतपुड़ा पर्वत श्रेणी। (3) नर्मदा सोन घाटी।

 

1. उत्तरी उच्च प्रदेश- मध्यप्रदेश का उत्तरी भाग अधिक ऊँचाई का पठारी भाग है, मालवा के पठार और कैमूर पर्वत की ऊँचाई के भाग तथा विन्ध्याचल पर्वतीय भाग इस क्षेत्र में सम्मिलित किये जाते हैं।

 

(अ) मालवा का पठार -मध्य प्रदेश के पश्चिम में मालवा का पठार उत्तर-पश्चिम में अरावली तथा दक्षिण में विन्ध्याचल पर्वत श्रेणियों के मध्य स्थित है। पूर्व में सागर दमोह अक्ष इसकी पूर्वी सीमा निर्धारित करता है। इस पठार की औसत ऊँचाई 480 मीटर और कुल क्षेत्रफल 89,960 वर्ग किलोमीटर है। समस्त पठार दक्कन ट्रेप से आवृत था परन्तु वर्तमान में अनेक स्थलों पर इस पठार के अपरदित हो जाने के बीच-बीच में विन्ध्य शैलों की पहाड़ियाँ दिखाई देती हैं। इस प्रकार की पहाड़ियाँ सागर तथा भोपाल के निकट दिखाई देती हैं। इस प्रदेश का अधिकांश भाग काली मिट्टी और ग्रेनाइट और नीस शैलों से निर्मित है।

 

(ब) विन्ध्य पठारी प्रदेश-मध्य प्रदेश के उत्तर-पश्चिमी भाग में बुन्देलखण्ड की सीमा से इसकी सीमा मिलती है तथा दक्षिणी और पूर्वी सीमा नर्मदा-सोन की घाटी द्वारा निश्चित है। इस भाग में विन्ध्यन शैल दीवार के समान खड़े हैं जो भाण्डेर तथा कैमूर पहाड़ियों के नाम से जाने जाते हैं। इस समस्त प्रदेश की औसत ऊँचाई 450 मीटर के लगभग है। इन पहाड़ियों के ऊँचे भागों में दक्कन ट्रेप के अवशेष पाये जाते हैं। इस पठारी भाग का ढाल उत्तर की ओर है तथा समस्त प्रदेश हल्का ऊँचा नीचा है। उत्तरी भाग की औसत ऊँचाई 300 से 450 मीटर है। केन और उसकी सहायक नदियाँ इस भाग से होकर बहती हैं। विन्ध्य पठारी भाग की उत्तरी सीमा एक प्रपाती कगार है जो पन्ना, सतना तथा रीवा जिलों में पश्चिम से पूर्व की ओर फैली है। इस भाग में नदियाँ संकरी कन्दराओं में होकर बहती हैं तथा अनेक जल प्रपात भी पाये जाते हैं। 

(स) उत्तरी मैदानी भाग-यह समस्त मैदानी भाग ग्वालियर, छतरपुर, सतना, पन्ना, रींवा, दमोह, सागर, जबलपुर जिलों में पश्चिम-पूर्व दिशा में फैला है। इस प्रदेश की औसत ऊँचाई 183 से 305 मीटर है। इस भाग में अनेक नदियाँ बहती हुई यमुना में मिल जाती हैं। 

2. सतपुड़ा पर्वत-नर्मदा की घाटी के दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत श्रेणी पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली है, जो पूर्व में छोटा नागपुर के पठार तक चली गयी है। सतपुड़ा पर्वत क्रम पूर्व में महादेव और मैकाल श्रेणियों के नाम से फैला है। यह समस्त श्रेणी कठोर और रवेदार शैलों से निर्मित 600 मीटर से अधिक ऊँची है। इन पहाड़ियों का पश्चिमी भाग दक्कन ट्रेप से ढका हुआ है। दक्षिण की ओर इनका ढाल तीव्र है परन्तु उत्तर की ओर ढाल बहुत धीमा है। सतपुड़ा पर्वत का पूर्वी भाग मैकाल पठार कहलाता है, जो मध्य प्रदेश का सर्वाधिक चौड़ा पठारी भाग है जिसके पूर्वी भाग में स्थित मैकाल श्रेणी है। इस पठार के अधिकतम ऊँचे भाग 100 मीटर के हैं। परन्तु मैकाल श्रेणी में अमरकण्टक (1,124 मीटर) ऊँची चोटी है। 

बुरहानपुर और बेनगंगा के मध्य पूर्व-पश्चिम के विस्तार में महादेव पहाड़ियाँ हैं। इन्हीं पहाड़ियों में सतपुड़ा की अधिकतम ऊँची चोटी, धूपगढ़ (1,350 मीटर) स्थित है। इस भाग में अनेक स्थलों पर अंश पाये जाते हैं। अनेक स्थलों पर नदियों के जमाव और जलप्रपात पाये जाते हैं। बुरहानपुर दरें के पश्चिम का भाग पश्चिमी सतपुड़ा कहलाता है। सतपुड़ा की यह श्रेणी संकरी तथा कम ऊँची है। यहाँ अधिकतम ऊँचाई 1,033 मीटर है। इस श्रेणी के पूर्वी भाग को असीरगढ़ तथा पश्चिमी भाग को अखरानी तथा बड़वानी की श्रेणियाँ कहा जाता है। इस श्रेणी का उत्तर में विस्तार नर्मदा नदी तक है।

 

3. नर्मदा-सोन की भ्रंश घाटी-उत्तर में विन्ध्याचल और दक्षिण में सतपुड़ा श्रेणियों के मध्य 322 किलोमीटर लम्बी और 35 से 120 किलोमीटर चौड़ी नर्मदा की भ्रंश घाटी है।

इस घाटी में जबलपुर जिले का दक्षिणी भाग, निमाड़ और खण्डवा जिलों का उत्तरी भाग तथा नरसिंहपुर और होशंगाबाद के जिले सम्मिलित किये जाते हैं। यह घाटी समुद्रतल से 305 मीटर ऊँची है। यह समस्त समतल मैदान हल्का ऊँचा नीचा है। नर्मदा नदी जबलपुर के निकट मैकाल पहाड़ियों को छोड़कर मैदान में प्रवेश करती है। यहाँ पर धुआँधार नामक प्रपात बनाती है तथा यहाँ से पश्चिम की ओर 3 किलोमीटर लम्बी कन्दरा में होकर बहती है, यह कन्दरा कुछ स्थानों पर केवल कुछ ही मीटर चौड़ी है। यहीं पर प्रसिद्ध संगमरमर की च‌ट्टानों को नर्मदा नदी ने काटकर अपना मार्ग बनाया है। मान्धाता से बड़वानी तक यह घाटी अधिक चौड़ी है। यह नर्मदा का निचला मैदान है। जिसे मण्डलेश्वर का मैदान कहते हैं। इस मैदान के मध्य में नर्मदा एक छोटा-सा प्रपात बनाती है, इसे सहस्त्रधारा कहते हैं। बड़वानी से आगे की ओर नदी पुनः संकरी कन्दरा में होकर बहती है। हरिनपाल के निकट से नर्मदा अपनी अन्तिम कन्दरा में प्रवेश करती है तथा राजपीपला के निकट गुजरात में प्रवेश करती है। नर्मदा की घाटी के पूर्व में सोन नदी की घाटी है जो अधिक संकरी है। सोन नदी की घाटी में कछारी मिट्टी के जमाव कम पाये जाते हैं। 


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